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श्री राणी सती दादी का मंगल पाठ बरमकेला में संपन्न

पोता के जन्मदिन पर प्यारे अग्रवाल ने कराया पाठ

सारंगढ़ । परम आराध्या श्री राणी सती जी के प्रताप, उनके वैभव व अपने भक्तों पर निःस्वार्थ कृपा बरसाने वाली माँ नारायणी को कौन नहीं जानता ? भारत में ही नहीं, अपितु पूरी दुनिया में इनके करोड़ो भक्त व उपासक हैं । पौराणिक इतिहास से ज्ञात होता है कि – महाभारत के युद्ध में चक्रव्यूह में अभिमन्यु वीरगति को प्राप्त हुए थे। उस समय उनकी पत्नी उत्तरा जी को भगवान श्रीकृष्ण ने वरदान दिया था कि कलियुग में तू श्री राणी सती के नाम से विख्यात होगी, सारी दुनिया में तू पूजित होगी। उसी वरदान स्वरूप श्री राणी सती दादी सती हुई थी ।

बरमकेला निवासी प्यारेलाल अग्रवाल अपने पोते के जन्मदिन पर सती रानी दादी का मंगल पाठ करवाया । मंगलपाठ गायिका टाटानगर से आकर दादी मां का पाठ की ।‌ बरमकेला अग्रवाल समाज की माताएं बहनों के साथ पूर्व विधायक डॉक्टर जवाहर नायक , समाजसेवी रतन शर्मा , गोपाल अग्रवाल, पत्रकार भरत अग्रवाल के साथ सैकड़ो लोगों की उपस्थिति रही । सती रानी दादी के मंगल पाठ गायिका अपने भजनों से सभी को नृत्य करने के लिए मजबूर करती रही गायिका सरस्वती की वरद पुत्री जैसे लगी । माँ राणी सती का जन्म डोकवा ग्राम में हुआ था। इनके पिता का नाम सेठ गुरसामल जी एवं माता का नाम श्रीमती गंगा देवी थी । इनका नाम नारायणी बाई रखा गया था। ये बचपन में धार्मिक व सतियों वाले खेल खेलती थी। बड़ी होने पर सेठ जी ने उन्हें धार्मिक शिक्षा के साथ साथ, शस्त्र शिक्षा व घुड़ सवारी की शिक्षा भी दिलाई थी।

बचपन से ही इनमें दैविक शक्तियाँ नजर आती थी, जिससे गाँव के लोग आश्चर्य चकित थे। नारायणी बाई का विवाह हिसार राज्य के सेठ श्री जालीराम जी के पुत्र तनधनदास जी के साथ । तनधनदास जी का जन्म हिसार के सेठ जालीराम के घर पर हुआ था। इनकी माता का नाम शारदा देवी था। छोटे भाई का नाम कमलाराम व बहिन का नाम स्याना था। जालीराम जी हिसार के दिवान थे। वहाँ के नवाब के पुत्र और तनधन दास जी में मित्रता थी। परंत समय और संस्कार की बात है, तनधनदास जी की घोडी शहजादे को भा गई। घोडी पाने की हठ में दोनों में दुश्मनी ठन गई । घोडी छिनने के प्रयत्न में शहजादा मारा गया। इस हादसे से घबराकर दीवान जी रातों-रात परिवार सहित हिसार से झुंझन की ओर चल दिये। हिसार सेना की ताकत, झुंझुनू सेना से टक्कर लेने की थी । दोनों शाहों में शत्रुता होने के कारण ये लोग झुंझुनूं में बस गये। मुकलावा के लिए तनधन बाबा के साथ लाडो रानी बाई आने लगी रास्ते में शाह के लोगों के द्वारा आक्रमण कर दिया जाता है जिसमें तनधन बाबा की मृत्यु हो जाती है सती रानी दादी युद्ध के मैदान में खूब लड़ती है लड़ने के पश्चात पति के शरीर के साथ स्वयं सती हो जाती है ।

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