गाय बैल भैंस को खुरपका-मुंहपका रोग से बचाने करायें उनका टीकाकरण
“प्रखरआवाज@न्यूज”
सारंगढ न्यूज़/ रायगढ राष्ट्रीय पशु रोग नियंत्रण कार्यक्रम अंतर्गत गाय, बैल, भैंस, भैंसी को खुरपका-मुंहपका रोग से बचाने जिले में आगामी 15 अक्टूबर तक सघन टीकाकरण अभियान चलाया जा रहा है। पशुधन विकास विभाग ने ठाना है कि रायगढ़ जिला को खुरपका-मुंहपका (खुरहा)रोग से मुक्त कराना है। इसी तारतम्य में जिला प्रशासन एवं पशुधन विकास विभाग रायगढ़ द्वारा पशु चिकित्सा टीकाकरण दल के द्वारा ग्रामों में घर-घर जाकर एफएमडी टीकाकरण किया जा रहा है। उप संचालक पशुपालन डॉ.आर.एच.पाण्डेय ने बताया कि खुर वाले पशुओं में एप्थोवायरस नामक विषाणु से होने वाली यह संक्रामक रोग है। इस विषाणु के सात सीरो टाइप ए, ओ, सी, एसिया-1 एवं एसएटी 1, 2, 3 है। जिसमें भारत में मुख्यत: ए, ओ, सी एवं एसिया-1 से ही यह बीमारी होती है। यह बीमारी, बीमार पशुओं के संपर्क में आने से, उनके खाने एवं अपशिष्ट पदार्थों से तथा मनुष्यों द्वारा विषाणु के संपर्क में आने से स्वस्थ पशुओं में फैलता है। इसके लक्षण पाये जाने पर पशुओं में बुखार, मुंह से लार का बहना एवं पैरों में लंगड़ापन इत्यादि होता है। इस बीमारी की वजह से छोटे बछड़ों की मृत्यु होने से पशुधन की हानि होती है। व्यस्क पशुओं में मृत्यु दर कम होती है किन्तु दुग्ध उत्पादन एवं कार्यक्षमता प्रभावित होती है। इसके बीमारी से बचाव के लिए बीमार पशुओं की पहचान कर स्वस्थ पशुओं से अलग कर उपचार करना एवं स्वस्थ पशुओं का सघन टीकाकरण करना जरूरी है। डॉ.पाण्डेय ने जिले के सभी पशुपालकों से आग्रह किया है कि गाय, बैल, भैंस, भैंसी को खुरपका-मुंहपका रोग से बचाने के लिए उन्हें टीका अवश्य लगवायें और अपने पशुओं को सुरक्षित करें।रायगढ़, 5 अक्टूबर 2022/ राष्ट्रीय पशु रोग नियंत्रण कार्यक्रम अंतर्गत गाय, बैल, भैंस, भैंसी को खुरपका-मुंहपका रोग से बचाने जिले में आगामी 15 अक्टूबर तक सघन टीकाकरण अभियान चलाया जा रहा है। पशुधन विकास विभाग ने ठाना है कि रायगढ़ जिला को खुरपका-मुंहपका (खुरहा)रोग से मुक्त कराना है। इसी तारतम्य में जिला प्रशासन एवं पशुधन विकास विभाग रायगढ़ द्वारा पशु चिकित्सा टीकाकरण दल के द्वारा ग्रामों में घर-घर जाकर एफएमडी टीकाकरण किया जा रहा है।
उप संचालक पशुपालन डॉ.आर.एच.पाण्डेय ने बताया कि खुर वाले पशुओं में एप्थोवायरस नामक विषाणु से होने वाली यह संक्रामक रोग है। इस विषाणु के सात सीरो टाइप ए, ओ, सी, एसिया-1 एवं एसएटी 1, 2, 3 है। जिसमें भारत में मुख्यत: ए, ओ, सी एवं एसिया-1 से ही यह बीमारी होती है। यह बीमारी, बीमार पशुओं के संपर्क में आने से, उनके खाने एवं अपशिष्ट पदार्थों से तथा मनुष्यों द्वारा विषाणु के संपर्क में आने से स्वस्थ पशुओं में फैलता है। इसके लक्षण पाये जाने पर पशुओं में बुखार, मुंह से लार का बहना एवं पैरों में लंगड़ापन इत्यादि होता है। इस बीमारी की वजह से छोटे बछड़ों की मृत्यु होने से पशुधन की हानि होती है। व्यस्क पशुओं में मृत्यु दर कम होती है किन्तु दुग्ध उत्पादन एवं कार्यक्षमता प्रभावित होती है। इसके बीमारी से बचाव के लिए बीमार पशुओं की पहचान कर स्वस्थ पशुओं से अलग कर उपचार करना एवं स्वस्थ पशुओं का सघन टीकाकरण करना जरूरी है।
डॉ.पाण्डेय ने जिले के सभी पशुपालकों से आग्रह किया है कि गाय, बैल, भैंस, भैंसी को खुरपका-मुंहपका रोग से बचाने के लिए उन्हें टीका अवश्य लगवायें और अपने पशुओं को सुरक्षित करें।