भीखमपूरा के सपेरों की अनकही दास्तान: झोपड़ी में गुज़र-बसर और सांपों के संग जीवन
सारंगढ़- बिलाईगढ़ जिले के अंतिम छोर पर स्थित ग्राम पंचायत भीखमपूरा में लगभग 90 परिवारों की एक सपेरों की बस्ती बसी हुई है। ये परिवार पारंपरिक रूप से सांप पकड़ने और दिखाने का काम करते हैं, जिससे उनकी रोजी-रोटी चलती है। भीखमपूर के सपेरे अपनी विशेष रीति-रिवाजों और जीवनशैली के लिए जाने जाते हैं, जो उनके पूर्वजों से चली आ रही हैं। लेकिन आधुनिक समय में भी ये लोग बुनियादी सुविधाओं से वंचित हैं और शासन-प्रशासन की उपेक्षा का शिकार हो रहे हैं।**
सपेरों की अनोखी परंपराएं:
भीखमपूरा के सपेरों की जीवनशैली और परंपराएं अद्वितीय हैं। नाग पंचमी का त्यौहार यहां विशेष धूमधाम से मनाया जाता है, क्योंकि यह सांपों के प्रति उनकी श्रद्धा और आस्था का प्रतीक है। विवाह की परंपरा में भी सांपों का महत्वपूर्ण स्थान है। यहां बेटी की शादी में उसे तीन से पांच सांपों को दहेज के रूप में दिया जाता है। यह प्रथा उनके पूर्वजों द्वारा स्थापित की गई है और आज भी इसका पालन किया जाता है। सांपों को पकड़ना और उन्हें गांव-गांव दिखाना ही इन सपेरों की जीविका का मुख्य साधन है।
झोपड़ी में गुज़र-बसर की मजबूरी:
भीखमपूरा के सपेरों की आर्थिक स्थिति बहुत कमजोर है, जिसके कारण वे पक्के मकानों के बजाय झोपड़ियों में रहने को मजबूर हैं। खासकर भारी बरसात के दौरान उनकी हालत और भी खराब हो जाती है। बारिश में झोपड़ियां टपकने लगती हैं, जिससे उन्हें भारी मुश्किलों का सामना करना पड़ता है। उनके पास बुनियादी सुविधाओं का भी अभाव है, जैसे कि स्वच्छ पानी, बिजली, और स्वास्थ्य सेवाएं। ये सपेरे पूरी तरह से अपनी पारंपरिक गतिविधियों पर निर्भर हैं, लेकिन बदलते समय के साथ उनका काम भी सिकुड़ता जा रहा है।
शासन-प्रशासन की उपेक्षा:
भीखमपूरा के सपेरों की दशा शासन-प्रशासन की अनदेखी का परिणाम है। इनकी बस्ती में न तो सरकार की तरफ से कोई विशेष योजना लागू की गई है और न ही इनकी समस्याओं को हल करने के लिए कोई ठोस कदम उठाए गए हैं। सपेरों का कहना है कि वे कई बार अपनी समस्याओं को लेकर अधिकारियों के पास गए, लेकिन उनकी सुनवाई नहीं हुई। शासन-प्रशासन की इस उदासीनता ने उनके जीवन को और अधिक कठिन बना दिया है।
भीखमपूरा के सपेरे आज भी अपने पूर्वजों की परंपराओं और रीति-रिवाजों को निभाते हुए जीवन यापन कर रहे हैं। लेकिन बुनियादी सुविधाओं की कमी और शासन-प्रशासन की अनदेखी ने उनके जीवन को संघर्षपूर्ण बना दिया है। यह जरूरी है कि सरकार और प्रशासन इन सपेरों की समस्याओं पर ध्यान दें और उनके जीवन स्तर को सुधारने के लिए आवश्यक कदम उठाएं। इनकी संस्कृति और परंपराओं को संरक्षित करने के साथ-साथ इन्हें बेहतर जीवन यापन के साधन उपलब्ध कराए जाने चाहिए, ताकि वे भी समाज की मुख्यधारा में शामिल हो सकें।