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पारंपरिक धरोहरों और कार्यक्रमों के साथ सारंगढ़ पुष्प वाटिका में मनाया गया विश्व आदिवासी दिवस

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हमारे आदिवासी समाज की संस्कृति ऐतिहासिक, समृद्ध और विविधतापूर्ण – रामनाथ सिदार

आदिवासी समाज का धर्म प्रकृति और सांस्कृतिक परंपराओं के साथ गहरा संबंध – चंद्र कुमार नेताम

सारंगढ़ । सारंगढ़ गुरु घासीदास पुष्प वाटिका में जिला सारंगढ़ सर्व आदिवासी समाज के द्वारा विश्व आदिवासी दिवस को बड़े ही गरिमा पूर्ण माहौल में विधि विधान से पूजा अर्चना कर विभिन्न आदिवासी समाज के पारंपरिक धरोहरों से जुड़ी सांस्कृतिक कार्यक्रमों के आयोजन के साथ उल्लास पूर्वक मनाया गया। हर साल 9 अगस्त को विश्व आदिवासी दिवस मनाया जाता है। यह दिवस संयुक्त राष्ट्र द्वारा 1994 में घोषित किया गया था। जिसका मूल उद्देश्य दुनिया के आदिवासी समुदायों के अधिकारों की रक्षा करना, उनके सांस्कृतिक धरोहर को संरक्षित करना और उनकी समस्याओं के प्रति जागरूकता बढ़ाना है।

जिला सारंगढ़ बिलाईगढ़ आदिवासी समाज के प्रमुख नेताओं के द्वारा पुष्प वाटिका स्थल से सामाजिक शोभा यात्रा निकाला गया, जो भारत माता चौक होते हुए तुर्की तालाब गार्डन तक पहुंचा वहां से सिनेमा हॉल होते हुए नगर के मुख्य मार्ग जयस्तंभ चौक, आजाद चौक होते हुए भारत माता चौक होकर पुष्प वाटिका पहुंची । इस दौरान आदिवासी समाज के सरगुजिहा , बस्तरिहा और जशपुरिहा नृत्य के माध्यम से शहर वासियों को आदिवासी संस्कृति की जानकारी दी गई। पूरे शोभायात्रा में सारंगढ़ पुलिस विभाग मुस्तैदी के साथ पैदल मार्च करते हुए शांति व्यवस्था बनाए रखने में सफल रहा। 

उक्त कार्यक्रम में रामकुमार ने कहा कि आदिवासी समुदायों, संवाद, उनकी संस्कृति और परंपराओं का सम्मान उनके अधिकारों के लिए समर्थन जुटाने की गति विधियाँ इस शोभायात्रा के माध्यम से अभिव्यक्त कि गई है। शोभा यात्रा में नदी से कैसे सोने का कण निकाला जाता है, इस बात की जानकारी भी आदिवासी महिला पुरुष ने साझा किया। इस कार्यक्रम के माध्यम से आदिवासियों के पारंपरिक गतिविधियां सांस्कृतिक कार्यक्रम उनसे जुड़ी आदिवासी पोशाक उनका तीर कमान वह तमाम बिंदु जो समाज की वर्षों पुरानी परंपरा और आज धरोहर के स्वरूप विद्यमान है वह सब इस शोभा यात्रा में देखने के लिए मिला।

सर्व आदिवासी समाज के जिला अध्यक्ष व नपा उपाध्यक्ष रामनाथ सिदार ने कहा कि हमारे आदिवासी समाज की संस्कृति अत्यंत समृद्ध व विविधता पूर्ण है, जो जीवन के हर पहलू में दिखाई देती है। भारत और दुनिया भर के आदिवासी समुदायों की संस्कृति उनके पारंपरिक ज्ञान, रीति-रिवाजों, धार्मिक विश्वासों, कला, संगीत, नृत्य, और सामाजिक संरचनाओं में अभिव्यक्त होती है आदिवासी संस्कृति की विशेषताओं को उजागर करते हैं । आदिवासी समाज का ज्ञान पीढ़ी दर पीढ़ी मौखिक रूप से हस्तांतरित होता है।

यह ज्ञान उनके पर्यावरण, चिकित्सा, कृषि व वन्य जीवन से जुड़ा होता है। आदिवासी समाज प्राकृतिक संसाधनों का सम्मान करता है । सतत विकास के सिद्धांतों को अपनाता है आदिवासी कला, जैसे कि – मिट्टी के बर्तन, बांस की कारीगरी, धातु कला और चित्रकला अद्वितीय व विशिष्ट होती है। प्रकृति, देवी – देवताओं और जीवन के विभिन्न पहलुओं का चित्रण होता है। भारत के मध्य प्रदेश का गोंड चित्रकला, ओडिशा का संथाल पेंटिंग, झारखंड का सोहराई कला इसके उदाहरण हैं।

आदिवासी समाज के प्रमुख जपं उपाध्यक्ष चंद्रकुमार नेताम ने कहा कि आदिवासी समाज में संगीत और नृत्य का विशेष महत्व होता है। ये धार्मिक अनुष्ठानों, पर्वों और सामाजिक समारोहों का अभिन्न हिस्सा होते हैं जैसे संथाल का जादुर नृत्य, उरांव का कर्मा नृत्य, और गोंड का ढोल-नृत्य प्रसिद्ध हैं। हमारे समाज, समुदायों का धर्म प्रकृति पूजा पर आधारित होता है, हम सूर्य, चंद्रमा, जल, वृक्षों, और अन्य प्राकृतिक तत्वों को पूजनीय मानते हैं । धार्मिक अनुष्ठान और पर्व प्रकृति के साथ हमारे गहरे संबंध को दर्शाते हैं। जैसे कि सरना पूजा, करमा पूजा और सोहराई।

आदिवासी समाज के द्वारा निकल गई इस सामाजिक रैली में लगभग 5000 लोग सम्मिलित थे, जिसमें महिला, पुरुष, युवा, युवती, बालक-बालिका सम्मिलित रहे। कार्यक्रम स्थल पुष्प वाटिका जहां आदिवासी समाज के नेताओं के द्वारा उद्बोधन दिया गया तदुपरांत सामाजिक लोगों के भोजन की व्यवस्था की गई थी आदिवासी समाज की शोभा यात्रा में सारंगढ़ पुलिस शांति व्यवस्था बनाने में पूरी तरह से सफल रही।

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