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दवा खाकर खत्म कर सकते हैं हाथीपांव और कृमि रोग

सारंगढ़ बिलाईगढ़, 5 मार्च 2025/ कलेक्टर धर्मेश साहू के निर्देशन में मुख्य चिकित्सा एवं स्वास्थ्य अधिकारी डॉक्टर एफ आर निराला के निगरानी में फाइलेरिया उन्मूलन के लिए जिले के तीनों ब्लॉक में आईडीए की दवाई खिलाई जा रही है। राज्य शासन ने 2027 तक हाथी पांव (फाइलेरिया) काउन्मूलन करने का निर्णय लिया है। पिछले 2 वर्ष तक जिले की 2 विकासखंड बरमकेला एवं सारंगढ़ में आईडीए का पायलट प्रोजेक्ट चलाया गया था। इस वर्ष कार्यक्रम को विस्तारित की गई, जिसमें बिलाईगढ़ विकासखंड को भी शामिल किया गया है। फाइलेरिया याने हाथीपांव की बीमारी एक परजीवी के कारण होता है जिसे मादा क्यूलेक्स मच्छर के द्वारा फैलाया जाता है। हाथीपांव की बीमारी के परजीवी जब सूक्ष्म रूप में होता है तभी उसे नष्ट कर सकते है। जवान होने की स्थिति में इसे समाप्त नहीं किया जा सकता। यही कारण है कि परजीवी को नष्ट करने के लिए पूरे समुदाय को आईडीए की दवाई खिलाई जाती है। परजीवी के बड़े होने की स्थिति में मानव शरीर के लासिका तंत्र को बाधित करता है, परिणाम स्वरूप पैरों में सूजन होती है। एक बार पैर में सूजन हो जाने के बाद इसे ठीक नहीं किया जा सकता है। इसलिए फाइलेरिया होने के पहले ही जब सूक्ष्म रूप में परजीवी होता है तब उसे मारा या नष्ट किया जा सकता है। यही कारण है कि समुदाय को एक साथ दवाई खिलाई जाती है।

फाइलेरिया या हाथीपांव उन्मूलन का यह अभियान 4 दिन बूथ में चलाया गया। आंगनवाड़ी केंद्रों,शालाओं, कार्यालयों को बूथ बनाई गई थी जिले में ऐसे 1391 बूथ बनाया गया था। 4 दिन की इस बूथ गतिविधि में 210250 लोगो को दवाई खिलाई गई है, जो कुल लक्षित समूह का 31% है। लक्षित व्यक्तियों की संख्या जिले में 664312 है जिन्हें दवाई खिलाएंगे। इस दवाई को सामने ही खिलाना होता है कई लोग बाद में खा लेंगे दवाई दे दीजिए लेकिन दवा नहीं खाते है जो उचित नहीं है। छोटे बच्चे जो आंगन में घर में नंग पैर खेलते है उन्हें कृमि रोग ज्यादा होता है। बच्चों को यथा संभव मोजे जूते पहना के रखने चाहिए। प्रत्येक शौच के बाद और खाना खाने के पहले हाथ जरूर साफ करना चाहिए। कुछ कृमि के परजीवी जिसे फीता कृमि कहते है। सुअर के मांस खाने से होता है। इसके परजीवी के लिए मनुष्य और सुअर दोनों होस्ट होते है। बारी बारी से दोनों होस्ट में रहता है। यही कारण है कि मनुष्य द्वारा सुअर के मांस खाने पर फीताकृमि होने की संभावना होती है। कृमि रोग को समाप्त करने के लिए स्वच्छता अभियान को अपनाना टॉयलेट का उपयोग करना। टॉयलेट को साफ रखना , घर आंगन को साफ रखना जरूरी होता है। इसी कारण गांव गांव को खुले में शौच मुक्त किया गया है। कृमि रोज का सीधा संबंध रक्त अल्पता या एनीमिया या खून की कमी होता है। फाइलेरिया की दवा पूर्णतः सुरक्षित है। कुछ लोगों को सिर दर्द ,बदन दर्द ,पेट में दर्द की शिकायत होती है, जो शरीर मे माइक्रोफाइलेरिया या कृमि के परजीवी होने के कारण हो सकता है। दवाई खाने के बाद परजीवी मरता है। परिणाम स्वरूप रिएक्शन होता है। ये साइड इफेक्ट दिखता है। कोई भी गोली खाने से जी मिचलाता है। आम तौर पर इसे इलाज करने की जरूरत नहीं होती फिर भी दर्दनाशक गोली एवं एंटासिड की गोली खाई जा सकती है ये गोली स्वास्थ्य कार्यकर्ता, सामुदायिक स्वास्थ्य अधिकारी के पास मिल जाएगा। विशेष परिस्थिति के लिए रैपिड रिस्पॉन्स टीम की गठन भी की गई है। परेशानी होने पर 104 पर भी फोन करके परामर्श ली जा सकती है।

बूथ में दवाई खिलाने पर बाएं हाथ के छोटी उंगली में निशान भी लगाए जा रहे है, जो बूथ में दवाई नहीं खाए है उन्हें 3 मार्च से 10 मार्च तक घर घर जाकर दवाई खिलाई जाएगी। उसके बाद 11 मार्च से 13 मार्च तक जिन्होंने बूथ में और घर में दवाई नहीं खा पाएंगे उन्हें मापअप राउंड चला कर छुटे हुए लोगों को खोज खोज कर आईडीए की दवाई खिलाई जाएगी आईडीए ( सामूहिक दवा सेवन अभियान) की इस अभियान में 3 प्रकार की दवाई समाहित है। 2 दवाई उम्र के अनुसार दी जा रही है जबकि एक दवाई को ऊंचाई के अनुरूप दी जा रही है। आईडीए के आई से आशय ईवरमेक्टिन, डी से डीईसी और ए से एलबेंडाजोल दवा है। एलबेंडाजोल की गोली को वर्ष में 2 बार अगस्त और फरवरी में दी जाती है, लेकिन फाइलेरिया नाशक दवाई की वर्ष में एक बार ही दी जानी होती है। तीनों दवाई की कंपोजिशन में दोनों बीमारी को नष्ट करने में सहायक है।

एलबेंडाजोल कृमिनाशक दवा

एलबेंडाजोल कृमि नाशक गोली है, जिसका सीधा संबंध स्वच्छता से होती है। समाज से अपेक्षा की जाती है कि वे अपने घर, पारा ,गली आदि की स्वच्छ बनाए रखे इससे कृमि मुक्ति को सफल बनाने में सहायक होगी। याद रहे घर में छोटे बच्चे नंगे पैर रहते है। घर में खेलते रहते है कुछ कृमि जो नग्न आंख से नहीं देखी जा सकती वे बच्चो के पैर के माध्यम से शरीर में प्रवेश कर जाता है। कुछ कृमि नग्न आंखों से देखी जा सकती है जैसे एस्केरिस, फीताकृमि जो भोज्य पदार्शों के साथ मुंह के माध्यम से शरीर में प्रवेश कर जाता है। दोनों ही माध्यम से शरीर में प्रवेश करने के बाद आंत को अपना स्थान बनाता है और जीवित रहने के लिए हमारे पोशाक तत्वों का सेवन करते रहता है, जिससे शरीर कमजोर होता है और रक्त अल्पता को बढ़ाते जाता है एनएफएचएस 5 के रिपोर्ट के अनुसार छत्तीसगढ़ में 6 माह से 5 वर्ष के बच्चो में रक्तअल्पता अर्थात खून की कमी (एनीमिया) 69 % है। 6 वर्ष से 10 वर्ष के बीच के बच्चो में रक्तअल्पता की दर 60% से अधिक है जबकि 10 वर्ष से 19 वर्ष के वर्ग समूह में रक्तअल्पता की दर 61% से ज्यादा है, विशेष कर बालिकाओं में रक्त अल्पता या खून की कमी को आसानी से पूर्ति कर सकते है खान पान को सुधार करके एवं आयरन की सप्लीमेंट कराके। यही कारण है कि 6 माह से 5 वर्ष के प्रत्येक बच्चे को वर्ष में 2 शीशी आयरन सिरप की दी जाती है, जिसे सप्ताह में दो दिन मंगलवार और शुक्रवार को एक एक एमएल दी जाती है, जबकि 6 वर्ष से 10 वर्ष के ग्रुप के बच्चे को पिंक कलर की आयरन गोली प्रति मंगलवार को खिलाई जाती है, जबकि 10 से 19 वर्ष के बीच समूह के बच्चे को आयरन फ़ोनिक एसिड नीले रंग की डब्ल्यूआईएफएस की गोली प्रति मंगलवार खिलाई जाती है। बच्चो में जो रक्त अल्पता कृमिरोग या अन्य कारणों से होती है उसकी भरपाई हमे आयरन फोलिक एसिड को गोली से करने होते है कुछ माह पूर्व स्कूल के बच्चो की टीएएस एक प्रकार की जांच है, जिससे पता लगाया जाता है बच्चे में फाइलेरिया के परजीवी है कि नहीं। यह टीएएस की परीक्षण जिले मे फेल हो चुकी है क्योंकि बच्चों के खून के नमूना जांच घनात्मक आया है। यही कारण है कि समुदाय को फाइलेरिया रोधी एवं कृमि रोधी दवाई खाना जरूरी हो गया है।

इन्हें दवा नहीं खिलाना है

2 वर्ष के कम उम्र के बच्चे, गर्भवती माताएं, बीमार लोग एवं वृद्ध व्यक्ति को आईडीए की दवाई नहीं खिलाई जानी है।

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