CHHATTISGARH

200 साल पुरानी परंपरा सारंगढ़ का गढ़ उत्सव

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राजपरिवार के मौजूदगी में दशहरा के दिन होगा गढ़ विच्छेद स्पर्धा

गढ़ भेदना था नामुमकिन यही वजह बना रियासतकालीन सारंगढ गढ़ विच्छेद खेल

गढ़ उत्सव के साथ रावण के पुतले का होगा दहन

सारंगढ़ । सारंगढ़ हमेशा से रियासत और सियासत को लेकर जाना जाता रहा है। सारंगढ़ राज परिवार और उनसे जुड़े रियासत कालीन कई रीति रिवाज उत्सव परंपरा के रूप में राज परिवार के द्वारा आज भी निभाये जा रहे हैं। उसी कड़ी में दशहरा पर्व के अवसर पर गढ़ उत्सव की परंपरा गढ़ विच्छेदन प्रतिस्पर्धा के रूप में रियासत समय से मनाई जाती रही है। 

पान पानी पा लागी की नगरी सारंगढ में राजपरिवार की 200 साल पुरानी परंपरा आज भी जीवंत है।

रियासतकाल के दौरान राजा अपने गढ़ को बचाए रखने में सफल होने की खुशी के तौर पर विजयादशमी के अवसर पर गढ़ विच्छेद प्रतियोगिता परंपरागत तरीके से धूमधाम से मनाते रहे है। आलम यह है कि आयोजित प्रतियोगिता में सैकड़ो गांव के साथ साथ पड़ोसी राज्यों से भी लोग इस आयोजन में हिस्सा लेते है। जिसकी तैयारी अब राजपरिवार के देख रेख में संबंधित समिति द्वारा की जाती है।

पौराणिक कथाओं में दहशरा के दिन नीलकंठ पक्षी को देखना शुभ होता है यही वजह है कि सारंगढ़ राजपरिवार के राजा के द्वारा शांति और समृद्धि के प्रतीक नीलकंठ पक्षी को खुले गगन मे विजयादशमी के दिन छोडक़र किया जाता है। जिसके उपरांत कई कार्यक्रम राज परिवार शाही अंदाज में करती आई हैं।

इसी में गढ़ विच्छेद का खेल भी है। गढ़ उत्सव लगभग 200 साल से भी पुरानी परम्परा है। गढ़ विच्छेद में गढ़ को मिट्टी के टीले के रूप में बनाया जाता है।

जिसके सामने का हिस्सा 50 फीट की मोटाई से मिट्टी का टीला कम होते होते ऊंची होते जाती है। यह लगभग 40 फीट की ऊंचाई पर जाकर यह टीला तीन फीट चौडा ही रह जाता है। ऊपर चढ़ने के लिए पीछे से सीढ़ी से सुरक्षा प्रहरी टीला के ऊपर मे रहते है। टीला के स्थापना के ठीक सामने लगभग 15 फीट चौड़ा तथा 10 फीट गहरा तालाब नुमा गड्ढा बनाया जाती है। यह पानी से भरा रहता है।

वहीं मिट्टी के टीले यानी गढ़ मे लकड़ी के नुकीले हथियार से गड्ढा करके ऊपर चढ़ने का खेल होता है, समीप मे लाल रंग की सीमा रेखा बनी रहती है। जिसके बीचों बीच में चढ़ना रहता है। जिसमे उन्हे ऊपर के सुरक्षा प्रहरियों से लोहा लेना होता है। सुरक्षा पहरी चढ़ने से रोकने पानी व लाठी तथा अन्य वस्तुओ से उपर आने से रोकते है। पूर्व रियासत काल मे राजा के सेना यहां ऊपर मे रहते थे जबकि वर्तमान आयोजन समिति के वालेंटियर व उत्सव सहयोगी रहते है।

प्रतिभागी मिट्टी के टिले को नुकीले औजार से गड्ढा खोदकर ऊपर चढ़ने का प्रयास करते है और एक दूसरे के नीचे गिरने की ओर लगी रहती है जो प्रतिभागी सुरक्षा प्रहरियों से जद्दोजहद कर गढ़ मे चढ़ने मे सफल होते हैं उन्हे गढ़ विजेता का पदवी दिया जाता है ततपश्चात राज परिवार के परंपरा अनुसार उसके हाथों से कुलदेवी मंदिर में पूजा अर्चना भी कराया जाता है उन्हें शॉल श्रीफल से सम्मानित किया जाता है और नगद राशि एवं शील्ड से पुरुस्कृत किया जाता है।

गढ़ विच्छेद खेल प्रतियोगिता का आयोजन परंपरागत और रियासत कालीन होने की वजह से इसकी ख्याती इतनी है कि ओड़िसा व छत्तीसगढ़ के जशपुर व सरायपाली आसपास के जिले से लोगो का हुजूम हजारों की संख्या में देखने के लिए आते है।

गढ़ उत्सव से नामकरण चौक और क्षेत्र का नाम भी नामकरण
सारंगढ़ से बिलासपुर मार्ग चौक मौजूद है जहां पर यह प्रतियोगिता आयोजन की जाती है। रियासत काल के दौर से प्रतियोगिता आयोजन होने से इस चौक का नामकरण भी गढ़ चौक के रूप में हो चुका है। प्रमाणित तौर शासकीय दस्तावेज में इसका उल्लेख भी है। जबकि आसपास के क्षेत्र को गढ़ चौक क्षेत्र कहा जाता है।

प्रदेश का एक मात्र उत्सव मैं शामिल हो चुके नामचीन हस्तिया
यह उत्सव पूर्व में प्रदेश में एक मात्र सारंगढ़ अंचल में ही आयोजित किया जाता है। जिसकी ख्याति देश भर में रही है।हालांकि समय के साथ यह उत्सव स्थानीय स्तर तक ही सिमट कर रह गया है। गढ़ विच्छेदन उत्सव पर पूर्व में नामचीन हस्तियां शिरकत कर चुकी हैं। राजपरिवार के राजा स्व. नरेशचंद्र सिंह अविभाजित मध्यप्रदेश के मुख्यमंत्री रह चुके हैं। उनके आमंत्रण पर मप्र के प्रथम मुख्यमंत्री स्व. रविशंकर शुक्ल, स्व. कैलाशनाथ काटजू तथा गोविंद सिंह मंडलोई सहित कई केन्द्रीय तथा राज्य कैबिनेट के मंत्री इस उत्सव में शामिल हो चुके हैं।

अनूठा और समृद्ध शाली आयोजन में चुना जाता था सेनापति
गढ़ विच्छेद का परंपरा ही अनूठा है। इस खेल प्रतियोगिता को लेकर कई तरह की मान्यताएं प्रचलित है जिसमें रियासत काल मे कोई भी राजा इस सारंगढ़ राजपरिवार पर कब्जा नही जमा पाया था। बताया जाता है तत्कालीन राजा द्वारा प्रधान सेना पति चुनाव किया जाता था। विदित हो कि सेनापति, सेनाओं का सबसे मजबूत अंग है ठीक उसी प्रकार इसका चयन भी कई प्रक्रियाओं से गुजरने के बाद होता था, जिसमें राजमहल की दीवारों पर चढ़ाई व अन्य कई कलाओं में कला को परखा जाता था। इसी में एक गढ़ चढ़ाई भी था। जो विजयादशमी में होती है।

राज परिवार करता है शुभारंभ
राज परिवार के द्वारा गढ़ उत्सव प्रतिस्पर्धा का शुभारंभ होता है शुभारंभ के साथ राजा जी के द्वारा क्षेत्र की जनता की मंगल कामना के साथ विजयदशमी की शुभकामनाएं प्रेषित की जाती है। इस सत्र राजा पुष्पा देवी सिंह सांसद राज परिवार से डॉक्टर मेनका देवी सिंह दो प्रवेश मिश्रा कुलिशा मिश्रा की उपस्थिति में कार्यक्रम का शुभारंभ होगा।

गढ़ स्पर्धा के साथ होगा रावण दहन
गढ़ उत्सव परंपरा के साथ विगत 50 वर्षों से लगभग 40 फीट से भी अधिक ऊंचाई के रावण के पुतले का दहन भी इसी स्थल में आयोजित होता है। सारंगढ़ के नजदीक ग्राम कोतरी के गोस्वामी परिवार जो राज परिवार के प्रमुख हितैषीयो में गिने जाते हैं उनके द्वारा विशालकाय रावण के पुतले का निर्माण किया जाता है और गढ़ से लगे हुए महज 20 फीट की दूरी में गढ़ टूटने के बाद रावण के पुतले का दहन किया जाता है।

प्रशासन की चाक चौबंद व्यवस्था
गढ़ उत्सव में हजारों जनमानस की भीड़ को देखते हुए प्रशासन तंत्र पूरी तरह से मुस्तैद रहता है ट्रैफिक और यातायात व्यवस्था के साथ गढ़ उत्सव स्थल पर सुरक्षा की पूरी व्यवस्था पुलिस प्रशासन और प्रशासन तंत्र सक्रियता और मजबूती के साथ करता आया है।

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