छत्तीसगढ़ के हास्य सम्राट सुरेंद्र दुबे का निधन, साहित्य जगत में शोक की लहर

रायपुर, छत्तीसगढ़ : छत्तीसगढ़ी हास्य और व्यंग्य साहित्य को अपनी अनूठी शैली से समृद्ध करने वाले जाने-माने कवि सुरेंद्र दुबे का निधन हो गया है। उनके निधन से छत्तीसगढ़ के साहित्य, कला और संस्कृति जगत में शोक की लहर दौड़ गई है। उन्होंने अपनी कविताओं और व्यंग्यों से न केवल छत्तीसगढ़ बल्कि पूरे देश में अपनी एक अलग पहचान बनाई थी।
एक युग का अंत: हास्य और व्यंग्य के बेताज बादशाह
सुरेंद्र दुबे छत्तीसगढ़ के उन गिने-चुने कवियों में से थे, जिन्होंने स्थानीय बोली-भाषा को राष्ट्रीय मंच पर पहुंचाया। उनकी कविताएँ जितनी सहज और सरल होती थीं, उतनी ही गहरी और विचारोत्तेजक भी। वे अपनी हास्य-व्यंग्य रचनाओं के माध्यम से समाज की विसंगतियों पर तीखा प्रहार करते थे, लेकिन उनका अंदाज़ हमेशा इतना मनमोहक होता था कि श्रोता हँसते-हँसते ही सब समझ जाते थे।
उनकी कविताओं में छत्तीसगढ़ की मिट्टी की सौंधी खुशबू, ग्रामीण जीवन की झाँकियाँ और आम आदमी के संघर्षों का जीवंत चित्रण मिलता था। वे मंच पर अपनी प्रभावी प्रस्तुति के लिए भी जाने जाते थे, जहाँ उनकी आवाज़, हाव-भाव और समय पर चुटीले कटाक्ष श्रोताओं को मंत्रमुग्ध कर देते थे।
साहित्यिक विरासत और सम्मान
सुरेंद्र दुबे ने अपने लंबे साहित्यिक जीवन में कई अविस्मरणीय रचनाएँ दीं। उन्हें उनके योगदान के लिए कई प्रतिष्ठित सम्मानों से नवाज़ा गया था, जिसमें प्रमुख रूप से पद्मश्री सम्मान शामिल है, जो उन्हें साहित्य और शिक्षा के क्षेत्र में उनके उत्कृष्ट कार्य के लिए दिया गया था। इसके अतिरिक्त, उन्हें अन्य राज्य स्तरीय और राष्ट्रीय पुरस्कार भी प्राप्त हुए थे।
उनके निधन पर मुख्यमंत्री, राज्यपाल सहित कई राजनेताओं, साहित्यकारों और कला प्रेमियों ने गहरा दुख व्यक्त किया है। सभी ने उनके योगदान को याद करते हुए उन्हें छत्तीसगढ़ की सांस्कृतिक विरासत का एक अमूल्य हिस्सा बताया।
एक प्रेरणादायक जीवन
सुरेंद्र दुबे का जीवन युवा कवियों और साहित्यकारों के लिए एक प्रेरणा स्रोत था। उन्होंने दिखाया कि कैसे अपनी मातृभाषा और स्थानीय संस्कृति के प्रति प्रेम को अपनी कला के माध्यम से अभिव्यक्त किया जा सकता है और उसे राष्ट्रीय स्तर पर पहचान दिलाई जा सकती है। उनकी कमी हमेशा महसूस की जाएगी, लेकिन उनकी रचनाएँ और उनकी यादें छत्तीसगढ़ी साहित्य में हमेशा जीवित रहेंगी।